Thursday, November 20, 2014


रात 



हर रात रुआंसा कर जाती है,
आंसुओं का काम आंसा कर जाती है,
रंग लहू के एक पर कितने रंग जता जाते है,
सपने सारे सुबह आँखों में धूल जाते हैं। 

जनाजा निकाले बातों की,
यादों से जलती-झुलसती रातों में,
तू आती है सदा,
दोस्ती का जनाजा साथ लेते हुए। 

बिजली गिरी है मेरी नींदों में,
तूफां ने अपना खेल-खेला है ,
तन्हाई है हर उस बातों में,
जहाँ तुम्हारी यादों की लहर चली है,
बात ही जो करनी थी,पर बात कौन करे?
मेरी तन्हाई से दो-दो हाथ कौन करे???

टुकड़ों  में है दिन मेरे,
मन जब तेरी बातें करता है,
दिखती हो हर बार जब तुम,
"क्यों मुझको हर बार रुला देता है??
दर्द अगर हो तुमको तनिक भी,
क्यों,खुद को खुद से  भुला देता हूँ मैं। । "

Saturday, April 5, 2014

दोस्ती हमारी …… 


लगता है थम सी गई है ज़िन्दगी हमारी,
किसी किनारे पर,
गजब हैं अफ़साने हमारे,
न जाने किसने बनाए ये खूबसूरत तराने।।

शाम थी बड़ी मस्तानी,खुदा कि दरबार लगी थी,
हवा भी सुहानी थी पर दिल था रुवांसा,
सोचा आज पूछ ही लूं अपने भगवान से,
ये दोस्ती किस बला का नाम है??

आंसमा खुला था,धरती भी सुघंदित,
खुदा का जवाब आया,

" दोस्ती हो यदि सच्चा तो वक़्त रुक जाता है,
आसमां लाख उच्चा, मगर झुक ही जाता है,
दोस्ती में दुनिया लाख बनती रुकावट,
अगर किसी एक भी दोस्ती सच्चा हो,
 तो हम भी सजदे झुक जाते।

दोस्ती वो एहसास है जो लाख मिटाये-मिटता नहीं,
दोस्ती वो हिमालय है जो कभी झुकता नहीं,
इसकी कीमत न पूछो हमसे,
इसके आगे तो खुद भी झुक जाता है.। "

हमने बोला तो ऐसी होती है ये दोस्ती,
एक प्रार्थना स्वीकार कर लो हमारी,
कभी मेरी दोस्ती कि खबर करना उसे,
और अपने इस कोमल धुन और,
मीठी-मीठी लफ्जों में,
इल्म बताना मेरी दोस्ती कि।!!। 

Thursday, January 16, 2014

 कहने को मन करता है…दोस्त के खतिर… !!

रूखे हाथों से फिर से सजाया है हमने,
कोड़े-कागज़ पर फिर से कुछ उकेरा है हमने।

सपने कई सँजोए हैं इन आँखों में हमने,
चिराग सा जल गया है इन आँखों में,
तुम बस दोस्ती कि इस आग को जलाए रखना।

धुप छेकने कि ख्वाइश देखें हैं इन आँखों ने,
 उँगलियों को उलझाए रखना,
तुम बस दोस्ती पर अपनी हाथो कि छाव रखना। 

कई डोर देखें हैं हमने पतंग के,
टूट जाए कभी हमारे दोस्ती कि डोर,
तुम बस अपनी डोर मेरी डोर से उलझाए रखना।

मंज़िले आसां नहीं होती अँधेरे में,
पर एक जुगनू कि तरह,
तुम बस मुट्ठी मैं छुपाए रखना इस दोस्ती को।

कलम जो उठाया है हमने,
पर बयाँ करने को शब्द नहीं मिलता,
कभी नाराज़गी का मौसम आए तो,
अपना पीर बना देना ए खुदा,
कम पड़े कोई आरज़ू उनकी,
उसे देकर मुझे फ़कीर बना देना।।