Tuesday, December 31, 2013

नया साल नए वादे नई सोच … !!!

आखिरी रात का आखिरी पल,
 को याद रहे वो सारा पल,
कि प्यार कि शम्मा को जलाना ही होगा,
हिन्द-ए -हिंदुस्तान को बचाना ही होगा,
लग गई है जिसपे धार्मिक-राजनीत का कलंक,
न कोई गीता हो न कोई कुरान,
इंसा पे क़ुर्बान हो हज़ारों निशाँ,
इस बार तो हद ही करदी खूनी दरिंदों ने,
चाहे कोई राम पूजे या अल्लाह पुकारे,
कोई तो हो जिसके सामान अश्क हो,
ना हो हिन्दू न मुसलमाँ,
 सब एक इंसा हों,
साथ हो हम तो एक तूफ़ान क्या??
हज़ारों जमा बदल के रख देंगे,
जुल्म और ताकत से नहीं,
ये जमाना आबाद है तो इल्म से,
नफरत से नहीं ये जमाना आबाद है 
प्यार से.…।

नए साल में पैगाम दीजिये,
इंसा से इंसा के मोहब्बत का,
नए साल में वादा करें ,
फिर से न दोहरायंगे मुजफ्फरनगर,
आखिरी रात का आखिरी पल,
 को याद रहे वो सारा पल,
कि प्यार कि शम्मा को जलाना ही होगा,
हिन्द-ए -हिंदुस्तान को बचाना ही होगा..... ।।

Tuesday, September 3, 2013

दोस्ती की नाकामी …. !!

इन उम्मीदों का मंजिल क्या है??
अपने आप से पूछ रहा हूँ मैं,
 कसमकश जो कभी जंजीरे सी बन जाती,
हर बार कि तरह कुछ घन्टों की नाकाम कोशिशें ,
ना जाने मैं क्या सोचता इस तरह.…!!!

नाता भी अजीब सी है,हर पल अपनों का एहसास दिलाता,
कुछ एहसास सा हुआ पास से गुजरने का,
कुछ खोया हुआ एहसास था चारो तरफ,
देखा कुछ चंद सवालों से लिपटा तेरा चेहरा,
शिकन बन तेरे चेहरे पर बन आई ख़ामोशी।।

यूँ तो रिश्ते नाते बहुत हैं ज़िन्दगी में,
सजदे सा हँस देता हूँ,
ऐसी है कुछ साथ तेरी!!!!

ये दोस्ती तुम्हारी एक एहसास है,
बिन पन्नों के किताब है ये,
ज़िन्दगी में रंग भर देती ये दोस्ती,
हम इंसान तो इंसान भगवान् भी इससे अछूते नहीं!!!!
सजदे सा हँस देता हूँ,
ऐसी है कुछ साथ तेरी!!!!

Tuesday, June 4, 2013


ख़ामोशी का पहरा .......!!

सहसा ख़ामोशी में घिरा हुआ पाया खुद का चेहरा,
मैंने डरते हुए  देखा था ख़ुशी पर ख़ामोशी का पहरा!!

सहसा बात बदल कर,मन शांत करके,
फिर कुछ छेरा बातें पुरानी।

मंडिया कई थी,ठेले अनेक थे,
पर कहीं कोने में मचल रहा था रंगीन गुब्बारे तुम्हारे,
ठिठक गया था मैं वहीँ,भा गए थे वे गुब्बारे!!

सोचके मैं करता क्या????
भा गए थे वे गुब्बारे!!!

बिखर गए शाम हमारे,
रात का इंतज़ार करते।।

नींद बिखरे हैं,ख्वाब देखते तुम्हारे,
 
बाहर के आंधी से था,मन का तूफ़ान था कहीं बढ़कर ,
बहार के आघातों से,मन का अवसान था कहीं बढ़कर,
फिर भी मेरे मन ने तुमको उरने की गति चाहि।।
 

Sunday, April 21, 2013

बहुत दर्द देकर,शायद  .....!!

माँ बहुत दर्द सहा मैंने,बहुत दर्द दिया तुम्हें,
एक तू ही तो थी मेरी दर्दों का हमसफ़र,

तुझसे आज में बिदा हो रही हूँ,बहुत दर्द सहकर
 आज जब हमारी बिदाई की खबर सुर्ख़ियों में आयेगी,
सफ़ेद ज़ोरों में देखकर मेरे साथ सिसक-सिसक कर मरने का ढोंग करेंगे,
बहन-बेटी होने पर अफ़सोस जताया करेंगे,
माँ उनसे बस उतना कहना दरिन्दों की दुनिया में संभल के रहना।
माँ जब भी राखी आयेगी,भईया की कलाई सुनी रह जाएगी,
याद मुझे कर उनकी आँखें सूझ जाया करेंगी,
पर माँ तू उन्हें रोने मत देना,
तिलक लगाने को मेरा मन भी मचला करेगा,
पर माँ तू उन्हें रोने न देना।
पा भी छुप-छुप कर आंसू बहाया करेंगे,
सारा इलजाम अपने पर लेंगे,
माँ पर तू यह होने ना देना,
बोलना वो तो अभिमान थे मेरे,
तू बस इतना ही कह देना उनसे।
माँ तुम्हारे लिए अब मैं क्या कहूँ??
दर्द को भी तुमसे शर्म आने लगेगी शायद,
माँ तुझे लोग बहुत बोलेंगे,
मेरा ठीक से खयाल ना रखने का इलज़ाम लगायंगे,
माँ सब सह लेना,उनलोगों को जमकर जवाब देना,
और कहना अगले जनम मोहे बिटिया ही देना भगवन।
माँ पर उन नेताओं को जरुर कहना,
मुबारक हो आपको,
अपना शक्ल दिखाने का दोबारा मौका मिल गया तुम्हें,
फिर भी ना माने तो बोलना,
हजारो सवालों से अच्छी है ख़ामोशी आपकी!!

Thursday, March 21, 2013

महाराष्ट्र में सुखा और अकाल परा है,और एक ओर नेता और संत अपने में मद-मस्त हैं। इन सब को ध्यान रखते हुए एक गरीब का हाल बयाँ कर रहा हूँ।

एक रोटी

गाँव में अकाल परा था,
 नेता जी मद-मस्त परे थे,
एक-एक रोटी की  कमी थी,
किसान मरे फिर रहे थे,
फिर भी नेता जी मद-मस्त परे थे।

एक गाँव के बृद्ध ने अपने एक हमउम्र से पूछा,
तब बुढऊ कितना रोटी खायेगा,
बरा ही मासूमियत से उसने जवाब दिया ५।
पहला बुढऊ ने पूछा,
इस उम्र में ५!!
दुसरे ने जवाब दिया "हाँ"....!!

 पहले बुढऊ  ने पूछा,
एक खाने के बाद जगह बचेगी,
पेट है ही कितना बरा तुम्हारा??
दुसरे बुढऊ ने बरे ही भोलेपन से जवाब दिया,
यही तो मलाल है,
एक रोटी ही कहाँ नसीब हो रही??
 
 सोचियेगा जरुर....!!

Wednesday, March 13, 2013

आतंकवाद और राजनीति

सूरज को किसने रोते हुए देखा होगा??
मैंने देखा है सूरज को नम आँखों में,
लोगों ने पूछा कहाँ??

मैंने कहा ताज को तो देखा ही होगा,
जहाँ हमारी संस्कृति बस्ती है,
इंसानियत पे जब हमला हुआ था,
तब तो इसे हिन्दू और मुस्लमान न पता थे,
और न कभी होगा।
फिर ये हमला क्यूँ??
तब सूरज ने बादल के सहारे आंसू बहाया होगा।

  जहाँ-जहाँ हम लोगों की ख़ुशी खिला करती थी,
जहाँ मासूम बच्चे दाने खिलाया करते हैं पंक्षी को,
जहाँ मासूम अपनी दिन बिताया करते हैं,
जहाँ-जहाँ लोग खुशियाँ मनाया करते है,
जहाँ के आवाम गीता और कुरान दोनों पढ़ते होंगे,
क्यूँ वहां बारंबार लोग अपने कुकृत्य से,
इंसानियत को शरमशार करते हैं??

क्यूँ जब देश के बेटे अपने प्राण आहुति मैं दे देते,
अपनी माँ के लिए,
तो कुछ लोग उन्हें नमन तक नहीं करते??
उल्टा उन काफिरों का समर्थन करते,
जो इंसानियत के दुश्मन बने हुए हैं??
घृणा होती है मुझे उनलोगों पर,
जो शहीदों के शव पर भी,
गन्दी राजनीती से तौबा नहीं करते।

फारुख साहब जरा अपने बेटे उमर को तो सरहद पर भेज के देखें,
की कैसा लगता है उस बाप को 
जिसको अपने बेटे की लाश को कान्धा देना परता होगा??
अब ये सब देखकर हमारे सूरज देवता कैसे न रोए?
छुप-छुप कर ही सही,
मैंने देखा है उन्हें बीच समुद्र में आंसू बहाते हुए।।

Saturday, March 2, 2013

.......बहुत याद आती हो आप

 जब भी मैं बाहर निकलता,
एक माँ को देखता हूँ अपने बच्चे लिए,
बहुत लार-प्यार से सींचती है अपने जिगर के टुकड़े को,
खुद तो खाती नहीं पर बच्चा भूखा न रहता कभी,
जिगर से चिपका रखती,
कहीं इस जालिम दुनिया में कहीं गुम न जाए।

रात भर खुद तो जगती है,
और बच्चे को रात भर थपथपाया करती है,
मौत का आगोश में जब तक समां नहीं जाती आप,
तब तक सो नहीं पाती आप,
रिश्तों का भी अजीब सा चक्र है,
चोट मुझे लगती,और बेचैन आप रहतीं,
ज़िन्दगी भर भगवान से कुछ न मांगती,
सिवाए हमारे खुशीओं की कभी न फूटते गुब्बारे।

जब भी कभी रोया करता था मैं,
सारा चूल्हा-चौकी फ़ेंक,
भाग कर आती थी हमारे पास,
कहीं मेरा लाल रोते-रोते बेहाल न हो जाए।

जब भी कभी परीक्षा की घरी आती,
तो मानो ऐसा लगता जैसे परीक्षा मेरी नहीं खुद उनकी हो,
मैं सो जाऊं तब भी  रात-रात भर दूध के गिलास लिए हाज़िर रहती वो,
और सुबह-सुबह दही-चीनी लिए हाज़िर रहती है वो,
की कहीं मेरा लाडला कहीं गलती न कर जाए।

जब भी परीक्षा मैं कम अंक आते,
हमारी तरफदारी करना न भूलती वो,
पापा के डांट से हमेशा बचा लेती वो,
पर आंख के किन्हीं कोने में आंसू जरुर रहता।
नहीं पता किस पवित्र चीज़ से बनी हुई है वो,
हरेक जिद को हंस कर पूरा कर देती वो।

कलेजे पर पत्थर रख,और आँखों में आंसू भर,
बहार पढने भेज देती वो,
इस आस में की हम पढ़-लिख लेंगे,
और ज़िन्दगी में बरा नाम कमायंगे हम।
जब कभी बीमार होती,
पापा से कहती खबर न करना मेरे लाल को,
ख़ामोखां परेशां हो जायेगा वो।

यह जिंदगी भी कितनी जालिम है,
चाह कर भी पास न जा पाता मैं, 
हर पल माँ तुम्हारी याद आती है!!
हर पल यही कहती जहाँ भी रहो खुश रहो,
और मेरी परवाह न करो।
यह सुन आँखे नम हो जाती,
बहुत याद आती हो आप माँ।।

Sunday, February 3, 2013

पढ़े-लिखे अनपढ़।

किसी अनजानी गली से पार हो रहा था,
तभी कानों में किसी पंडित के मधुर स्वर सुनाई परा!!
मुख वो अच्छा, जो कृष्णा जी का चिंतन किया करे,
नेत्र वो सुन्दर, जो कान्हा जी की छवि निहारा करे!!

आस-पास नज़र दौराई,
चारों तरफ इमारतें ऊँची भरी परी थी,
फिर ख्याल आया इसका क्या फ़ायदा??
लोगों ने दिल तो छोटी कर ली थी,
रास्ते तो चौरे मिलते,
पर नज़रिया तंग कर लिए थे,
हवाई जहाज में यात्रा कर दूरियाँ घटा लेते थे,
पर दिलों के फासले बढ़ गए थे।

कौन दुश्मन,और कौन अपने सब कुछ धुंध सा है,
पढ़े-लिखे सभ्य तो हैं,
पर बेटी जन्मे तो कहते,वंश कैसे बढ़ेगा??
एक फल के चाहत मैं बाग़ ही उजार देते ,
उनको ये शायद यह पता नहीं कि,
की फूल रहे ना धरती पर तो
फल कैसे प्राप्त करेंगे??
 
चलते तो हैं अपने a/c कार में,
पर फेंकते है कूड़ा करकट सड़कों पर
मानो फ़ेंक रहे हैं 
अपनी नकली सभ्यता का 
मुखोटा उतार कर,
'यहाँ थूकना मना है' पढ़कर भी
सालों से वहीँ थूकते आ रहे हैं
मानो थूक रहें हैं
 अपने साक्षर होने के प्रमाण पत्र पर. 
 
ग़रीबों का सपना-सपना ही कहाँ होता??
अनिश्चितता के मकड़जाल में बुनता रहता है अपना सपना,
नेता के भाषण, वादों, जीत और कुछ भी न बदलने के चक्र में
दम तोड़ती नज़र आती है
पदलोलुपता, महत्वाकांक्षा और भ्रष्टाचार के शासन तले
लात हर बार उसके पेट पर ही मारी जाती है.
नहीं समझ पाता वो
बढती महंगाई में भी, शेयरों के भाव क्यों गिरते हैं?
पर हम पढ़े-लिखे लोगों को इससे क्या मतलब??
उनका पहिया तो हमेशा चलता रहता,
वोट उसे ही देते जो विकलांगो के पैसो को भी नहीं बक्श्ते,
खुर्शीद साहब सोचते होंगे गरीबों का क्या अर्थ,उन्हें तो चंद पैसे देकर साथ ले लेंगे ??
क्यूंकि ये पढ़े-लिखे लोगों को क्या मतलब??
उन्हें तो अपने से मतलब है,
क्यूंकि वो तो वोट देने ही नहीं जाते।। 
 
क्या सच में हैं हम शिक्षित ??
क्या सच में हैं हम साक्षर ?
 आस्चर्य होता किसी के मुख से यह सुनकर की,
मुख वो अच्छा, जो कृष्णा जी का चिंतन किया करे,
नेत्र वो सुन्दर, जो कान्हा जी की छवि निहारा करे!!
क्यूंकि मुख पे तो कृष्ण और अल्लाह रहते
पर दिल मैं हमेशा बैर ही रहता।। 

Thursday, January 31, 2013

 तन्हाइयों मैं गुजरा करती है रात

आजकल अक्सर तन्हाइयों मैं गुजरा करती है रात 
पता नहीं क्या खास दिया था खुदा ने तुझमे,
सवाल किया करता हूँ अपने-आप से रात भर,
एक बार नहीं सौ-सौ बार,
पर जवाब कभी न आता है जुदा सा,
हर पल दिल कहता है देर है अंधेर नहीं।

ख़ामोशी से रहने का आदत नहीं है ,
 पर जब भी मैं निकलता था सर-ए-बाज़ार में,
तो लगता था मुझपे आवारगी का इलज़ाम,
और जब तन्हा रहा करता था,
तो लगता था इलज़ाम-ए-मोहब्बत का, 
यही सब बातों ने हमें लिखने पर मजबूर कर दिया,
शीशा हूँ, टूटूंगा तो बिखरूंगा ही,
पर एक खनक के साथ,
खनक के साथ एक खामियाजा भी छोर जाऊंगा।

कभी अपने इस  नादानी पर गुस्सा आता है,
तो कभी पूरी दुनिया को हँसाने को जी चाहता है।
कभी छुपा लेता हूँ दर्द को दिल के किसी कोने में,
तो कभी किसी को सब कुछ चिल्ला-चिल्ला कर सुनाने को जी चाहता है।
कभी रोया न करता था दिल के मामले में,
पर कभी यूँ ही आंसू बहाने का जी चाहता है।
कभी हंसी आ जाती है बीती बातों को याद करके,
तो कभी उसे तुरंत भुलाने को जी चाहता है।
कभी-कभी खुले आसमान को निहारने को जी चाहता है,
तो कभी बंद कमरे मैं तकिया से भी जी उचटता है।
कभी सोचता हूँ कोई नयी मिल जाए इस जालिम सफ़र में,
तो कभी हर पल तुम्हारे लिए जिए जाने को जी चाहता है।।

Monday, January 28, 2013

ब्लॉग का शौख!!  

आजकल एक नया शौक चढ़ा था,
कविता लिखने का,
इसी चक्कर कमबख्त मैंने अपना ब्लॉग शुरू किया,
सोचा था अब इस ब्लॉग के महफ़िल में आने से 
जरा मशहूर भी हो जाऊंगा।
 
बहुत मेहनत से सींच रहा हूँ हरेक पोस्ट को इस ब्लॉग का,
पर कमेन्ट तो दूर की बात 
हाजरी भी बहुत मुश्किल से कोई लगाता।
बहुत मेहनत से उग़ा रहा था इस ब्लॉग के हर फूल को,
सोचा था महक उठेगा ये कमेंट की खुशबू से!!
क्यूंकि टिप्पणियाँ ही करती है इसे अमर,
किसी तुकबंदी से काम चला लेता मैं,
फर्क न परता मुझे 
यदि वो  "SUMAN " का सिर्फ LIKE ही क्यूँ ना होता।।

कुछ न सूझ रहा हो तो कम से कम यूँ (;) मुस्कुरा ही देने का है,
हौसला अफजाई ही करते,
कम से कम देखने वालों का तादाद ही बढ़ा देते।
माना की मेरे ज़श्न मैं तुम्हे शरीक होने का मन नहीं,
कम से कम ताली तो बजा देते।।
 
पसंद तुम्हे आये चाहे ना आये,
पर कमबख्तों टिकट तो हमने INTERNET का कटवा ही लिया है,
पैसा तो मैं गवां चुका,
अब पसंद आये चाहे न फिल्म तो देखनी ही परेगी तुझे।
 मातम मनाने से तो अच्छा है,
फीकी मुस्कान तुम्हारी।।
फीकी हँसी भी असर करेगी कमबखत!!
 
अब जब आ ही गया हूँ ब्लॉग के इस महफ़िल में,
तो कोई तो निशानी छोर जा रे,
कमबख्तों कमेंट न सही,
कम से कम,
हाजरी के लायक तो हूँ ही।।

Friday, January 25, 2013

माँ  


बहुत दुःख दिया था मैंने उसे,
खुदा ने माँ को शायद इस खातिर बनाया था 
ताकि इस धरती पर भगवान के साक्षात् मूरत रह सके।।

भूल गया था मैं की ये वही माँ है,
जब भी आँसू आते थे हमारी आँखों मैं,
सबसे पहले वो ही आती थी इस कम्बख्त के आंसू पोछने को,
आज भी रोती है वो हमारे चले आने के गम में,
शायद मैं यह भूल गया था की 
"माँ तो माँ ही होती है आंखिर"।।

जब भी मैं निकला करता था धुप मैं,
अपने आँचल से छाँव दिया करती थी वो,
और खुद चिलचिलाती धुप मैं जला करती थी वो,
कितनी भोली होती है उसकी सूरत??
खुद के ऊपर धुप और मेरे ऊपर प्यार का छाँव,
आज भी रोती है वो हमारे चले आने के गम में,
शायद मैं यह भूल गया था की 
"माँ तो माँ ही होती है आंखिर"।।

हर पल उसने ख़ुशी और प्यार दिया,
बदले मैं मैंने सिर्फ और सिर्फ गम और आंसू दिया।
अनगिनत दुःख दिया था मैंने उसे 
पर फिर भी हँसते-हँसते सह जाती थी वो,
आज भी रोती है वो हमारे चले आने के गम में,
शायद मैं यह भूल गया था की 
"माँ तो माँ ही होती है आंखिर"।।

आज मुझे एहसास हुआ है खुदा,
क्यूँ देता है उसे तू एक जुकाम भी??
वो तो कभी भी इस दुःख का हकदार न थी??
क्यूँ देता है तू दुःख उस??
मेरी दी हुई दर्द क्या कम कष्टदायक थी??
माँ का क़र्ज़ तो संतान ही अदा करता है ना?
आज भी रोती है वो हमारे चले आने के गम में,
शायद मैं यह भूल गया था की 
"माँ तो माँ ही होती है आंखिर"।।

हर रोज़ तुम्हारे दर पर दीये जलाया करूँगा,
फिर कभी न उसे रुलाऊंगा,
कभी मन न भरेगा हमारा प्यार से उसका,
माँ की जरुरत भला किसे न होगी??
आज भी रोती है वो हमारे चले आने के गम में,
शायद मैं यह भूल गया था की 
"माँ तो माँ ही होती है आंखिर"।।

उसके हर मुश्किलों को हमारे पास भेज दिया कर,
आंखिर माँ की जरुरत कब और किसे कहाँ-कब न होती??
 आज भी रोती है वो हमारे चले आने के गम में,
शायद मैं यह भूल गया था की 
"माँ तो माँ ही होती है आंखिर"।।

मेरी हर ख़ुशी मुझसे ले ले तू ,
पर बदले मैं मेरी माँ को हमेशा खुश रख तू।
मेरी तन्हाईयों का और कोई साथी न हो सकता,
आंखिर माँ किसी को भला थोरे ही बार बार मिलती??
आज भी रोती है वो हमारे चले आने के गम में,
शायद मैं यह भूल गया था की 
"माँ तो माँ ही होती है आंखिर"।।

Thursday, January 17, 2013

बचपन 


बहुत याद आतें है वो दिन,
वो बचपन के दिन 
जब माँ के हाथ झुला बना करते थे 
और मैं उन हाथों का झुला ,
खुद के  बाहों मैं वो झुलाती थी
केवल मेरे लिए ही लगता था वो।

बहुत याद आती है वो ममता 
जब कभी भी चोटें आया करती थी,
सारी दुनिया को वो छोर 
सिर्फ मुझपर ही ध्यान दिया करती थी वो।

बहुत याद आतें है वो दिन
जब कभी भी रोया करता था मैं 
पूरा-पूरा रात गुज़ार देतीं थी मेरे क़दमों पे।

मुझको वो ममता याद आती है,
रोज़ यादें उनकी सताती है,
आँखों से अश्रु चाह कर भी रूकती नहीं।
मैं और मेरी बहन 
गहने थे उनके जिंदगी के,
कितना प्यारा था वो जमाना।

पर कैसा है ये जमाना??
अपनो को ही भूल-बैठे हैं हम।
कितना प्यार करती है वो बहिन 
जिसको रक्षा करने का वचन तो दे देते 
पर इस पास्चात्य संस्कृति में बोल कहाँ मायने रखते अब??
पर आज भी वो उतना ही प्यार करती जितना कल।

भूल गए हैं हम ममत्व के बाबुल को
करती वो प्यार आज भी कितना 
आंखिर माँ तो माँ ही होती है।
हमको भी याद आयेगा उनका साया,
जब आयेगा हमें भी बुढ़ापा,
है वक़्त अभी भी सँभालने का,
सही वक़्त है उन्हें असली हक देने का,
प्यार करो अपने माँ-बाप से 
भूल कर ये सारा संसार।

माफ़ी माँग उस मौला से 
क्यूंकि वे ही भगवन के असली रूप हैं 
ये बचपन की याद मुझे बहुत सताती हैं 
सताती हैं ये बचपन के याद बहुत ही।। 

Monday, January 14, 2013

हम 


नींद न आ रही थी कई रातों से,
न ही आसमान मैं तारे गिने जा रहे थे,
ऐसा लग रहा था मानो देश में  अकाल परा  हो
शायद ये पहली बार था की ये अकाल अनाज के लिए नहीं था 
अकाल परी थी राजनीति का,
अकाल परी थी सोच का,
अकाल परी थी इंसानियत का,
एक जगह लोग प्राण गवां रहे थे दूसरों के  भविष्य के लिए 
और एक तरफ लोग अपने स्वार्थ मैं मदहोश हो रहे थे ।

आज के लोग प्यार में जहर के प्याले पीने को तैयार होते हैं ,
पर उन रूहों का कुछ नहीं जिन्हें पानी भी नसीब नहीं ,
लोग होटलों में हजारों का खाना छोर देते ,
उन रूहों का क्या जो अनगिनत रातें भूखे पेट बिताते??
आज सिर्फ हमारे ही अरमानों का मोल है,
पर उन अरमानों का क्या जिन्हें किताबें भी नसीब नहीं?

 उन्हें तो ये भी भी सोचने का हक नहीं की 
ये काली दुःख के बादल पिघलेंगे  और सुख का सागर आयेगा।
आज मिट्टी की भी कीमत मिलती है,पर इंसानों का कुछ मोल नहीं 
हर बात को पैसों में  आकने लगे हैं हमारे राजनेता।
कितने अदभुत हैं हम लोग,कितने महान हैं हम।
कितनी निष्ठा और धीरज है इन मानवता के राजनेताओं में,
इनको शत शत नमन हमारी!!

हमारी शान झूठे और नकली सिक्कों से तोली जाने लगी है,
 हरेक रात के बाद उजाला आती है,
 उम्मीद है वो सुबह जल्दी आये ,
ख़ुशी होगी यदि ये हमारे जीवनकाल में ही आए।।

Sunday, January 13, 2013

राजनीति और सियासत 

राजनीति और सियासत सुनते ही मन मैं एक भूचाल सा होता है,
 किन्ही  महापुरोसों का आभास होता है,
किन्ही स्त्रियों का अंश याद आता है,
उस माँ के ममत्व का याद आता है,
उस प्यार का याद आता है जिसमे मर मिटने की कसमें खाई जाती है 
उस प्यार का याद आता है जो दूर रहते हुए भी एक बने रहते हैं 
उस प्यार का याद आता है जिसमें मरने पर भी गर्व होता है।

शेरों की लाश आती है  बिना सर के,
सीमा पर जवान खाना त्याग दते हैं,
पर प्यार की कीमत लगाने मैं चुक नहीं करते।
 ममत्व अब मायने नहीं रखते। 
ये ठंडी शीतलहर ने शायद इस प्यार को जमा कर रखने की हिमाकत की है। 

ऐ शीतलहर तू जानती नहीं इस प्यार और  ममत्व की शक्ति 
ये ममत्व ये प्रेम जरुर उठेगा,
ये प्रेम जरुर उठेगा उन शेरों का बदला लेने लिए 
अपने भूल के लिए,अपने उन कपूतों की गलती के लिए 
मातृभूमि की इन सपूतों का रक्त जाया न होने देंगे, 
जरुर दहारेंगे हम और ऐसा की पुरी दुनिया  ये दहार देखेगी।।

Tuesday, January 1, 2013

कहाँ हैं हम ??


बहुत दिन बाद घर आया था 
माँ ने कहा बेटा  मंदिर हो आओ 
बाहर जाने के बाद तो तुम भगवन को भूल ही गए हो 
जाके थोरा सदबुद्धि  ले लो।
ठंडा का मौसम था
अनमने ढंग से  तैयार हुआ और बस अड्डा जा पहुंचा।

कुछ ही देर रुका  था की एक बूढी औरत को सामने देखा 
ठण्ड मैं किकुरते हुए, एकबारगी तो मैं ठिठक गया
इतनी जबरदस्त ठण्ड की हाथ खुले रह गए तो मानो हाथ कट जाए।
तभी सामने से एक लाल बत्ती लगी pagero आती हुई दिखी 
लगा इस बूढी अम्मी को कुछ राहत मिलेगी 
पर नेताजी तो मंद मंद मुस्कुराते हुए आगे बढ़ लिए।

कुछ सोचता इससे पहले की बस ने दस्तक दे दी 
अनमने ढंग से बस मैं बैठ गया
भाग्य ने साथ दिया खिरकी तरफ तशरीफ़ रखी
थोरी ही दूर पहुंचा था की बस ने हिचखोला खाई और मेरी नज़र बाहर जा टिकी
कुछ बच्चे ठण्ड मैं बर्तन मांज रहे थे
और सामने टंगा था सर्व शिक्षा अभियान के नारे लिखा पोस्टर
ऐसी बेजोर मेल शायद ही देखने को मिले।
भगवान के साक्षात् मूरत और वो जूठे बर्तन!!

बरहाल मंदिर पहुंचा
सामने कुछ बूढ़े और बच्चे भीख मांगते हुए दिखे
ठण्ड के परवाह किये बिना हरेक श्रधालुओं के आगे हाथ फैलाते
मिला तो ठीक न मिला तो भी ठीक।
अन्दर घुसा तो एक बहुत सज्ज़न उद्योगपति  दिखे
सोने के मुकुट दान देते हुए
कल ही अख़बार मैं पढ़ा था
उनके मातहत काम करने वाले ने पैसे के अभाव मैं जान दे दी थी।

हमारे ऋषि मुनियों के इस देश मैं बहुत विविधताएँ हैं
लोग दुसरे के हक को अपना समझ खुद के तोंद बढ़ा लेते हैं
बच्चे जो की भगवन के मूरत होते उनसे भी काम करवाते
और दुनिया के सारे अच्छे कर्म के बाद भगवन को भी घूस देने पहुँच जाते।
मंदिर मैं मैंने माँ से सिर्फ एक ही  विनती की
माँ आपके दरबार मैं घूसखोरों की एक ना चले
और इनके करनी की सजा इन्हें जल्द मिले।।