Thursday, January 17, 2013

बचपन 


बहुत याद आतें है वो दिन,
वो बचपन के दिन 
जब माँ के हाथ झुला बना करते थे 
और मैं उन हाथों का झुला ,
खुद के  बाहों मैं वो झुलाती थी
केवल मेरे लिए ही लगता था वो।

बहुत याद आती है वो ममता 
जब कभी भी चोटें आया करती थी,
सारी दुनिया को वो छोर 
सिर्फ मुझपर ही ध्यान दिया करती थी वो।

बहुत याद आतें है वो दिन
जब कभी भी रोया करता था मैं 
पूरा-पूरा रात गुज़ार देतीं थी मेरे क़दमों पे।

मुझको वो ममता याद आती है,
रोज़ यादें उनकी सताती है,
आँखों से अश्रु चाह कर भी रूकती नहीं।
मैं और मेरी बहन 
गहने थे उनके जिंदगी के,
कितना प्यारा था वो जमाना।

पर कैसा है ये जमाना??
अपनो को ही भूल-बैठे हैं हम।
कितना प्यार करती है वो बहिन 
जिसको रक्षा करने का वचन तो दे देते 
पर इस पास्चात्य संस्कृति में बोल कहाँ मायने रखते अब??
पर आज भी वो उतना ही प्यार करती जितना कल।

भूल गए हैं हम ममत्व के बाबुल को
करती वो प्यार आज भी कितना 
आंखिर माँ तो माँ ही होती है।
हमको भी याद आयेगा उनका साया,
जब आयेगा हमें भी बुढ़ापा,
है वक़्त अभी भी सँभालने का,
सही वक़्त है उन्हें असली हक देने का,
प्यार करो अपने माँ-बाप से 
भूल कर ये सारा संसार।

माफ़ी माँग उस मौला से 
क्यूंकि वे ही भगवन के असली रूप हैं 
ये बचपन की याद मुझे बहुत सताती हैं 
सताती हैं ये बचपन के याद बहुत ही।। 

2 comments:

  1. awesome wrk yar.................. hats of..... salute 2 ur fellngs nd d way o ur prsntation.............. sale tune toh rula hi diya be..........

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