Monday, January 14, 2013

हम 


नींद न आ रही थी कई रातों से,
न ही आसमान मैं तारे गिने जा रहे थे,
ऐसा लग रहा था मानो देश में  अकाल परा  हो
शायद ये पहली बार था की ये अकाल अनाज के लिए नहीं था 
अकाल परी थी राजनीति का,
अकाल परी थी सोच का,
अकाल परी थी इंसानियत का,
एक जगह लोग प्राण गवां रहे थे दूसरों के  भविष्य के लिए 
और एक तरफ लोग अपने स्वार्थ मैं मदहोश हो रहे थे ।

आज के लोग प्यार में जहर के प्याले पीने को तैयार होते हैं ,
पर उन रूहों का कुछ नहीं जिन्हें पानी भी नसीब नहीं ,
लोग होटलों में हजारों का खाना छोर देते ,
उन रूहों का क्या जो अनगिनत रातें भूखे पेट बिताते??
आज सिर्फ हमारे ही अरमानों का मोल है,
पर उन अरमानों का क्या जिन्हें किताबें भी नसीब नहीं?

 उन्हें तो ये भी भी सोचने का हक नहीं की 
ये काली दुःख के बादल पिघलेंगे  और सुख का सागर आयेगा।
आज मिट्टी की भी कीमत मिलती है,पर इंसानों का कुछ मोल नहीं 
हर बात को पैसों में  आकने लगे हैं हमारे राजनेता।
कितने अदभुत हैं हम लोग,कितने महान हैं हम।
कितनी निष्ठा और धीरज है इन मानवता के राजनेताओं में,
इनको शत शत नमन हमारी!!

हमारी शान झूठे और नकली सिक्कों से तोली जाने लगी है,
 हरेक रात के बाद उजाला आती है,
 उम्मीद है वो सुबह जल्दी आये ,
ख़ुशी होगी यदि ये हमारे जीवनकाल में ही आए।।

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