कहने को मन करता है…दोस्त के खतिर… !!
रूखे हाथों से फिर से सजाया है हमने,
कोड़े-कागज़ पर फिर से कुछ उकेरा है हमने।
सपने कई सँजोए हैं इन आँखों में हमने,
चिराग सा जल गया है इन आँखों में,
तुम बस दोस्ती कि इस आग को जलाए रखना।
धुप छेकने कि ख्वाइश देखें हैं इन आँखों ने,
उँगलियों को उलझाए रखना,
तुम बस दोस्ती पर अपनी हाथो कि छाव रखना।
कई डोर देखें हैं हमने पतंग के,
टूट जाए कभी हमारे दोस्ती कि डोर,
तुम बस अपनी डोर मेरी डोर से उलझाए रखना।
मंज़िले आसां नहीं होती अँधेरे में,
पर एक जुगनू कि तरह,
तुम बस मुट्ठी मैं छुपाए रखना इस दोस्ती को।
कलम जो उठाया है हमने,
पर बयाँ करने को शब्द नहीं मिलता,
कभी नाराज़गी का मौसम आए तो,
अपना पीर बना देना ए खुदा,
कम पड़े कोई आरज़ू उनकी,
उसे देकर मुझे फ़कीर बना देना।।