Thursday, November 20, 2014


रात 



हर रात रुआंसा कर जाती है,
आंसुओं का काम आंसा कर जाती है,
रंग लहू के एक पर कितने रंग जता जाते है,
सपने सारे सुबह आँखों में धूल जाते हैं। 

जनाजा निकाले बातों की,
यादों से जलती-झुलसती रातों में,
तू आती है सदा,
दोस्ती का जनाजा साथ लेते हुए। 

बिजली गिरी है मेरी नींदों में,
तूफां ने अपना खेल-खेला है ,
तन्हाई है हर उस बातों में,
जहाँ तुम्हारी यादों की लहर चली है,
बात ही जो करनी थी,पर बात कौन करे?
मेरी तन्हाई से दो-दो हाथ कौन करे???

टुकड़ों  में है दिन मेरे,
मन जब तेरी बातें करता है,
दिखती हो हर बार जब तुम,
"क्यों मुझको हर बार रुला देता है??
दर्द अगर हो तुमको तनिक भी,
क्यों,खुद को खुद से  भुला देता हूँ मैं। । "