Tuesday, January 1, 2013

कहाँ हैं हम ??


बहुत दिन बाद घर आया था 
माँ ने कहा बेटा  मंदिर हो आओ 
बाहर जाने के बाद तो तुम भगवन को भूल ही गए हो 
जाके थोरा सदबुद्धि  ले लो।
ठंडा का मौसम था
अनमने ढंग से  तैयार हुआ और बस अड्डा जा पहुंचा।

कुछ ही देर रुका  था की एक बूढी औरत को सामने देखा 
ठण्ड मैं किकुरते हुए, एकबारगी तो मैं ठिठक गया
इतनी जबरदस्त ठण्ड की हाथ खुले रह गए तो मानो हाथ कट जाए।
तभी सामने से एक लाल बत्ती लगी pagero आती हुई दिखी 
लगा इस बूढी अम्मी को कुछ राहत मिलेगी 
पर नेताजी तो मंद मंद मुस्कुराते हुए आगे बढ़ लिए।

कुछ सोचता इससे पहले की बस ने दस्तक दे दी 
अनमने ढंग से बस मैं बैठ गया
भाग्य ने साथ दिया खिरकी तरफ तशरीफ़ रखी
थोरी ही दूर पहुंचा था की बस ने हिचखोला खाई और मेरी नज़र बाहर जा टिकी
कुछ बच्चे ठण्ड मैं बर्तन मांज रहे थे
और सामने टंगा था सर्व शिक्षा अभियान के नारे लिखा पोस्टर
ऐसी बेजोर मेल शायद ही देखने को मिले।
भगवान के साक्षात् मूरत और वो जूठे बर्तन!!

बरहाल मंदिर पहुंचा
सामने कुछ बूढ़े और बच्चे भीख मांगते हुए दिखे
ठण्ड के परवाह किये बिना हरेक श्रधालुओं के आगे हाथ फैलाते
मिला तो ठीक न मिला तो भी ठीक।
अन्दर घुसा तो एक बहुत सज्ज़न उद्योगपति  दिखे
सोने के मुकुट दान देते हुए
कल ही अख़बार मैं पढ़ा था
उनके मातहत काम करने वाले ने पैसे के अभाव मैं जान दे दी थी।

हमारे ऋषि मुनियों के इस देश मैं बहुत विविधताएँ हैं
लोग दुसरे के हक को अपना समझ खुद के तोंद बढ़ा लेते हैं
बच्चे जो की भगवन के मूरत होते उनसे भी काम करवाते
और दुनिया के सारे अच्छे कर्म के बाद भगवन को भी घूस देने पहुँच जाते।
मंदिर मैं मैंने माँ से सिर्फ एक ही  विनती की
माँ आपके दरबार मैं घूसखोरों की एक ना चले
और इनके करनी की सजा इन्हें जल्द मिले।।


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