ख़ामोशी का पहरा .......!!
सहसा ख़ामोशी में घिरा हुआ पाया खुद का चेहरा,
मैंने डरते हुए देखा था ख़ुशी पर ख़ामोशी का पहरा!!
सहसा बात बदल कर,मन शांत करके,
फिर कुछ छेरा बातें पुरानी।
मंडिया कई थी,ठेले अनेक थे,
पर कहीं कोने में मचल रहा था रंगीन गुब्बारे तुम्हारे,
ठिठक गया था मैं वहीँ,भा गए थे वे गुब्बारे!!
सोचके मैं करता क्या????
भा गए थे वे गुब्बारे!!!
बिखर गए शाम हमारे,
रात का इंतज़ार करते।।
नींद बिखरे हैं,ख्वाब देखते तुम्हारे,
बाहर के आंधी से था,मन का तूफ़ान था कहीं बढ़कर ,
बहार के आघातों से,मन का अवसान था कहीं बढ़कर,
फिर भी मेरे मन ने तुमको उरने की गति चाहि।।
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