Friday, September 4, 2015


वहम्

रात ही नहीं दिन भी है जुदा-जुदा,
ये ज़िन्दगी भी कैसी किश्त अदायगी कर रही है,
इस सफर में ना कोई पास है ना दूर,
न रूबरू हो सके किसी से पास से,
कुछ वहम था जो टूट गया,
बीता जो वक़्त वो यादों का मौसम था,
बस उससे एक हमदर्दी सी है,
पर.………… 
शायद वो स्टेशन पर आखिरी गाड़ी था।.!!!!

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